☀जय सियाराम☀

 
☀जय सियाराम☀
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नाहिंन और कोउ सरन लायक दूजो श्रीरधुपति -सम बिपति -निवारन। काको सहज सुभाउ सेवकबस , काहि प्रनत परप्रीति अकारन।1। जन-गुन अलप गनम सुमेरू करि, अवगुन कोटि बिलोकि बिसारन। परम कृपालु , भगत -चिंतामनि , बिरद पुनीत, पतितजन-तारन।2। सुमिरत सुलभ, दास -दुख सुनि हरि चलत तुरत , पटपीत सँभार न । साखि पुरान-निगम-आगम सब, जानत द्रुपद-सुता अरू बारन।3। जाको जस गावत कबि-कोबिद, जिन्हके लोभ-मोह , मद -मार न। तुलसिदास तजि आस सकल भजु, कोसलपति मुनिबधू- उधारन।4।
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