❤श्रीकृष्णचन्द्र❤
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आवत मोरी गलियन में गिरधारी।
मैं तो छुप गई लाज की मारी।
कुसुमल पाग केसरिया जामा, ऊपर फूल हजारी।
मुकुट ऊपर छत्र बिराजे, कुण्डल की छबि न्यारी।
केसरी चीर दरयाई को लेंगो, ऊपर अंगिया भारी।
आवत देखी किसन मुरारी, छिप गई राधा प्यारी।
मोर मुकुट मनोहर सोहै, नथनी की छबि न्यारी।
गल मोतिन की माल बिराजे, चरण कमल बलिहारी।
ऊभी राधा प्यारी अरज करत है, सुणजे किसन मुरारी।
मीरा रे प्रभु गिरधरनागर, चरण कमल पर वारी॥
गिरधारी को अपनी गली में आते देखा तो लाज की मारी मैं छिप गई। उनके सिर पर लाल रंग की पगडी थी, तन पर केसरिया वस्त्र और ऊपर सहस्त्र दलों के पुष्प। मुकुट के ऊपर छत्र विराजमान था और कुण्डलों की छवि न्यारी। राधा ने केसरिया रंग की अंगिया पहन रखी थी। प्यारी राधा ने किशन मुरारी को आते देखा तो छिप गई। उनके माथे पर मोर-मुकुट सज रहा था और नथनी की छवि न्यारी थी। गले में मोतियों की माला विराज रही थी। मैं उनके चरणकमलों पर बलिहारी जाती हूँ। राधा प्यारी खडी विनती करती है कि किशन मुरारी, मेरी बात सुनकर जाओ। मीरा कहती है कि मेरे प्रभु तो गिरधरनागर हैं, उनके चरणकमलों पर वारी-वारी जाती हूँ।
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