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❤️श्री गोपाल कृष्ण❤️
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धनि यह वृंदावन की रेनु ।
नंद-किसोर चरावत गैयाँ, मुखहिं बजावत बेनु ।
मन-मोहन कौ ध्यान धरै जिय, अति सुख पावत चैन ।
चलत कहाँ मन और पुरी तन, जहँ कछु लैन न दैनु ।
इहाँ रहहु जहँ जूठनि पावहु, ब्रजवासिन कै ऐनु ।
सूरदास ह्याँ की सरवरि नहि, कल्पवृच्छ सुर-धैनु ॥
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